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तुम्हारे चीख़ने से / रजनी तिलक

924 bytes added, 12:12, 24 सितम्बर 2020
करना है कुछ जीवन में
पहले अपना उत्सर्ग करना पड़ता है।
 
किसी पर आरोप लगाने से पहले
अपना अक्स भी झाँककर देख लो
पाने के लिए दुनिया है
अपना भी कुछ लुटाना पड़ता है
 
तुम्हारे रूठने झगड़े से
मुझे आपत्ति नहीं थी
तुम्हारे तेवर से मुझे आपत्ति है
टूटकर बिखर गए रिश्ते
 
अपने अहम देखो
अपनी शौहरत के लिए
मुझे दागदार बनाया
 
तुम्हें आगे बढ़ना है
शान से आगे बढ़ो
तुम मुक्त हो आजाद हो
दुनिया तुम्हारी है
अपनी आँचल का छोर तो बढ़ाओ ।
</poem>
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