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{{KKRachna
|रचनाकार=शहरयार
|अनुवादक=|संग्रह=शाम होने वाली है सैरे-जहाँ / शहरयार
}}
{{KKCatGhazal}}<poem>
जो कहते हैं कहीं दरिया नहीं है
सुना उन से कोई प्यासा नहीं है।
दिया लेकर वहाँ हम जा रहे हैं
जहाँ सूरज कभी ढलता नहीं है।
न जाने क्यों हमें लगता है ऎसा
ज़मीं पर आसमाँ साया नहीं है।
थकन महसूस हो रुक जाना चाहें
सफ़र में मोड़ वह आया नहीं है।
चलो आँखों में फिर से नींद बोएँ
कि मुद्दत से उसे देखा नहीं है।
</poem>