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{{KKRachna
|रचनाकार=शहरयार
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम होने वाली है / शहरयार
}}
{{KKCatNazm}}<poem>
ऎ अज़ीज़ अज़ जान मुग़्नी
 
तेरी परछाई हूँ लेकिन कितना इतराता हूँ मैं
 
आज़मी का मरना
 
नज्मा का बिछड़ना
 
तेरे बल-बूते पर यह सब सह गया
 
भूल कर भी यह ख़याल आया नहीं मुझको
 
कि तन्हा रह गया
 
तेरी उल्फ़त में अजब जादू-असर है
 
तेरी परछाईं रहूँ जब तक जियूँ
 
यह चाहता हूँ
 
ऎ ख़ुदा!
 
छोटी-सी कितनी बेज़रर यह आरज़ू है
 
आरज़ू यह मैंने की है
 
इस भरोसे पर कि तू है।
  आज़मी= ख़लीलुर्रहमान आज़मी (कवि के दोस्त); नज्मा= कवि की पत्नी; बेज़रर= हानि न पहुँचाने वाली</poem>
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