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बदन के आस-पास / शहरयार

49 bytes added, 14:50, 29 सितम्बर 2020
{{KKRachna
|रचनाकार=शहरयार
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम होने वाली है / शहरयार
}}
{{KKCatNazm}}<poem>
लबों पे रेत हाथों में गुलाब
 
और कानों में किसी नदी की काँपती सदा
 
ये सारी अजनबी फ़िज़ा
 
मेरे बदन के आस-पास आज कौन है।
</poem>
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