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सफ़र को जब भी / निदा फ़ाज़ली

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|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
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|संग्रह=खोया हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली
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<poem>
सफ़र को जब भी किसी
 
दास्तान में रखना
 
क़दम यकीन में, मंज़िल
 
गुमान में रखना |
 
जो सात है वही घर का
 
नसीब है लेकिन
 
जो खो गया उसे भी
 
मकान में रखना |
 
जो देखती हैं निगाहें
 
वही नहीं सब कुछ
 
ये एहतियात भी अपने
 
बयान में रखना |
 
वो ख्वाब जो चेहरा
 
कभी नहीं बनता
 
बना के चाँद उसे
 
आसमान में रखना |
 
चमकते चाँद-सितारों का
 
क्या भरोसा है
 
ज़मीं की धुल भी अपनी
 
उड़ान में रखना |
 
सवाल तो बिना मेहनत के
 
हल नहीं होते
 
नसीब को भी मगर
 
इम्तहान में रखना |
</poem>
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