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|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
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|संग्रह=खोया हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली
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<poem>
जिन चेहरों से रौशन हैं
 
इतिहास के दर्पण
 
चलती-फिरती धरती पर
 
वो कैसे होंगे
 
सूरत का मूरत बन जाना
 
बरसों बाद का है अफ़साना
 
पहले तो हम जैसे होंगे
 
मिटटी में दीवारें होंगी
 
लोहे में तलवारें होंगी
 
आग, हवा
 
पानी अम्बर में
 
जीतें होंगी
 
हारें होंगी
 
हर युग का इतिहास यही है-
 
अपनी-अपनी भेड़ें चुनकर
 
जो भी चरवाहा होता है
 
उसके सर पर नील गगन कि
 
रहमत का साया होता है
</poem>
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