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जो थे वही रहे / निदा फ़ाज़ली

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|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
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|संग्रह=खोया हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली
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<poem>
बदला न अपने-आपको
 
जो थे वही रहे
 
मिलते रहे सभी से
 
मगर अजनबी रहे |
 
अपनी तरह सभी को
 
किसी की तलाश थी
 
हम जिसके भी करीब रहे
 
दूर ही रहे |
 
दुनिया न जीत पाओ
 
तो हारो न आपको
 
थोड़ी-बहुत तो ज़हान में
 
नाराज़गी रहे |
 
गुज़रो जो बाग़ से
 
तो दुआ माँगते चलो
 
जिसमें खिले हैं फूल
 
वो डाली हरी रहे |
 
हर वक्त हर मुक़ाम पे
 
हँसना मुहाल है
 
रोने के वास्ते भी
 
कोई बेकली रहे |
</poem>
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