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{{KKRachna
|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}<poem>नयी-नयी पोशाक बदलकर, मौसम आते-जाते हैं,<br>फूल कहॉ जाते हैं जब भी जाते हैं लौट आते हैं।<br><br>
शायद कुछ दिन और लगेंगे, ज़ख़्मे-दिल के भरने में,<br>जो अक्सर याद आते थे वो कभी-कभी याद आते हैं।<br><br>
चलती-फिरती धूप-छॉव से, चहरा बाद में बनता है,<br>पहले-पहले सभी ख़यालों से तस्वीर बनाते हैं।<br><br>
आंखों देखी कहने वाले, पहले भी कम-कम ही थे,<br>अब तो सब ही सुनी-सुनाई बातों को दोहराते हैं ।<br><br>
इस धरती पर आकर सबका, अपना कुछ खो जाता है,<br>कुछ रोते हैं, कुछ इस ग़म से अपनी ग़ज़ल सजाते हैं।<br><br/poem>
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