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{{KKRachna
|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
|अनुवादक=|संग्रह=}} {{KKCatNazm}}<poem>तुम्हारी कब्र पर मैंफ़ातेहा पढ़ने नही आया,
मुझे मालूम था, तुम मर नही सकतेतुम्हारी कब्र पर मैं<br>मौत की सच्ची खबरफ़ातेहा पढ़ने नही आयाजिसने उड़ाई थी, वो झूठा था,वो तुम कब थे?कोई सूखा हुआ पत्ता,<br><br>हवा मे गिर के टूटा था ।
कहीं कुछ भी नहीं बदला,तुम्हारे हाथ मेरी आँखे<br>तुम्हारी मंज़रो मे कैद है अब तक<br>उंगलियों में सांस लेते हैं,मैं जो लिखने के लिये जब भी देखता हूँकागज कलम उठाता हूं, सोचता हूँ<br>वो, वही है<br>जो तुम्हारी नेक-नामी और बद-नामी की दुनिया थी ।<br><br>तुम्हे बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी में पाता हूं |