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लफ़्ज़ों का पुल / निदा फ़ाज़ली

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{{KKRachna
|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatNazm}}<poem>मस्जिद का गुम्बद सूना है <br>मंदिर की घंटी खामोश <br>जुज्दानो मे लिपटे सारे आदर्शों को <br>दीमक कब की चाट चुकी है <br>रंग !<br>गुलाबी<br>नीले<br>पीले कहीं नहीं हैं <br>तुम उस जानिब <br>मैं इस जानिब <br>बीच में मीलों गहरा गार <br>लफ़्ज़ों का पुल टूट चुका है <br>तुम भी तनहा <br>
मैं भी तनहा।
</poem>
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