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।।।म्हारे घरक्यां तै होई लड़ाई, चाल्या उठ सबेरी मै,।।।
 
।।।सन् 64 मै मिल्या पांणछी, मांगेराम दुहफेरी मै,।।।
 
।।।न्यूं बोल्या तनै ज्ञान सिखाऊ, रहै पार्टी मेरी मै,।।।
 
।।।तड़कै-परसूं सांग करण नै, चाला खाण्डा-सेहरी मै,।।।
 
।।।राजेराम सीख मामुली, जिब तै गाणा लिया मनै,।।।
(सांग:11 ‘कृष्ण-लीला’ अनु.-13)
इस प्रकार पं0 राजेराम लगभग 6 महीने तक गुरु मांगेराम के संगीत-बेड़े में रहे। उसके बाद प्रथम बार इन्होंने भजन पार्टी सन् 1978 ई0 से 1980 तक लगभग 3 वर्ष रखी। फिर वे किसी कारणवश अपने भजन-पार्टी को छोड़ गए, परन्तु साहित्य रचना और गायन कार्य शुरू रखा, जिसकों उन्होंने इस कार्य को आज तक विराम नहीं दिया। इन्होंने अब तक 19 किस्से व 50 के आसपास फुटकड़ रचनाओं का सृजन किया जो निम्नलिखित हैं-
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