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फ़रिश्तों और देवताओं का भी,
हयात कोसों निकल गई है,
हज़ार हो इल्मी-फ़न में यकता१,
न एक जर्रे का राज़ समझे,
ख़िताब२ बे-लफ़्ज़ कर गए हैं,
वो गुज़रे हैं इस तरफ़ से,जिस दम
मेरे लिए वक्त वो वक्त है जिस दम,
वो शाम जब ज़ुल्फ़ लहलहाए,
१. अद्वितीय २. सम्बोधन
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