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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>हर जलवे से एक दरस-ए-नुमू लेता हूँ<br>लबरेज़ कई जाम-ओ-सुबू लेता<br>पड़ती है जब आँख तुझपे ऐ जान-ए-बहार<br>संगीत की सरहदों को छू लेता हूँ<br><br>
हर साज़ से होती नहीं एक धुन पैदा<br>होता है बड़े जतन से ये गुन पैदा<br>मीज़ाँ-ए-नशात-ओ-गम में सदियों तुल कर<br>होता है हालात में तव्जौ पैदा<br><br>
सेहरा में जमाँ मकाँ के खो जाती हैं<br>सदियों बेदार रह के सो जाती हैं<br>अक्सर सोचा किया हुँ खल-वत में फिराक<br>तहजीबें क्युं गुरूब हो जाती हैं<br><br>
एक हलका-ए-ज़ंजीर तो ज़ंजीर नहीं<br>एक नुक्ता-ए-तस्वीर तो तस्वीर नहीं<br>तकदीर तो कौमों की हुआ करती है<br>एक शख्स की तकदीर कोई तकदीर नहीं<br><br>
महताब में सुर्ख अनार जैसे छूटे<br>से कज़ा लचक के जैसे छूटे<br>वो कद है के भैरवी जब सुनाये सुर<br>गुन्चों से भी नर्म गुन्चगी देखी है<br><br>
नाजुक कम कम शगुफ्तगी देखी है<br>हाँ, याद हैं तेरे लब-ए-आसूदा मुझे<br>तस्वीर-ए-सुकूँ-ए-जिन्दगी देखी है<br><br>
जुल्फ-ए-पुरखम इनाम-ए-शब मोड़ती है<br>आवाज़ तिलिस्म-ए-तीरगी तोड़ती है<br>यूँ जलवों से तेरे जगमगाती है जमीं<br>
नागिन जिस तरह केंचुली छोड़ती है
</poem>
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