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|रचनाकार=नीता कुकरेती
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<poem>
जिन्दगी का गाँठा अळझ्याँ ही रै गिनी
चू चैं तौं तैं सुळझावा , चू चैं तौं तैं सुळझावा
काकी बोडी दादी की कथा हरचनी
चू चैं तौं तैं खुज्यावा , चू चैं तौं तैं खुज्यावा
जणदों छौं मी आज , बदली गै समाज
मशीन की तरौं ह्वेगी मनख्यूँ कू काज
पैसियूँ का पिछनै नाता रिश्ता ह्वेनी खतम
चू चैं तौं तैं बचावा , चू चैं तौं तैं बचावा
आखर त पढयां छन गुण्याँ कतै नी छन
ब्वे बुबों तैं छोडी़ झणि कख अटगणा छन
जनी बुतल्या बीज , तनी फसल पैजदिन
चू चैं तौं तैं बिंगावा , चू चैं तौं तै बिंगावा
माटा गारा ढूँगों न कूड़ू ही चिणेंद
कूड़ू घौर - घौर लगु माया तख चयैंदं
माया का मायादार कै मुल्क चली गैनि
चू चैं तौं तैं बौड़ावा चू चैं तौं तैं बुलावा
गाड गदिनीयूँ को पाणी धै लगै कि बोगणू च
अपड़ा दगड़ी माटू गारा ढूंगा भी लिजाणू च
थामी ल्यावा मीतैं निथर बौगी मी गयँू
चू चैं माटू बचावा चू चैं पाड़ बचावा
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<poem>
जिन्दगी का गाँठा अळझ्याँ ही रै गिनी
चू चैं तौं तैं सुळझावा , चू चैं तौं तैं सुळझावा
काकी बोडी दादी की कथा हरचनी
चू चैं तौं तैं खुज्यावा , चू चैं तौं तैं खुज्यावा
जणदों छौं मी आज , बदली गै समाज
मशीन की तरौं ह्वेगी मनख्यूँ कू काज
पैसियूँ का पिछनै नाता रिश्ता ह्वेनी खतम
चू चैं तौं तैं बचावा , चू चैं तौं तैं बचावा
आखर त पढयां छन गुण्याँ कतै नी छन
ब्वे बुबों तैं छोडी़ झणि कख अटगणा छन
जनी बुतल्या बीज , तनी फसल पैजदिन
चू चैं तौं तैं बिंगावा , चू चैं तौं तै बिंगावा
माटा गारा ढूँगों न कूड़ू ही चिणेंद
कूड़ू घौर - घौर लगु माया तख चयैंदं
माया का मायादार कै मुल्क चली गैनि
चू चैं तौं तैं बौड़ावा चू चैं तौं तैं बुलावा
गाड गदिनीयूँ को पाणी धै लगै कि बोगणू च
अपड़ा दगड़ी माटू गारा ढूंगा भी लिजाणू च
थामी ल्यावा मीतैं निथर बौगी मी गयँू
चू चैं माटू बचावा चू चैं पाड़ बचावा
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