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शंकरलाल द्विवेदी / परिचय

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हिंदी के उत्कृष्ट मनीषी रहे श्री द्विवेदी जीविकोपार्जन हेतु अनेक संस्थाओं से सम्बद्ध रहे। उन्होंने स्नातकोत्तर के पश्चात् सन १९६६ में एक-वर्ष तक आगरा कॉलेज, आगरा तदोपरांत आर. बी. एस. महाविद्यालय, आगरा में हिंदी-अध्यापन कार्य किया। इसके पश्चात् वे सन १९६६ से सन १९७१ तक के. एल. जैन इंटर कॉलेज, सासनी, जनपद- अलीगढ (उ.प्र.) [वर्तमान में जनपद-हाथरस] में हिंदी प्रवक्ता के रूप में कार्यरत रहे। सन १९७१ में के. एल. जैन इंटर कॉलेज, सासनी से त्यागपत्र दे कर वे श्री ब्रज-बिहारी डिग्री कॉलेज, कोसीकलां, जनपद-मथुरा (उ.प्र.) में हिंदी प्रवक्ता पद पर आसीन हुए तथा अग्रिम श्री ब्रज-बिहारी डिग्री कॉलेज, कोसीकलां में ही उन्होंने हिंदी विभागाध्यक्ष का दायित्व ग्रहण किया।
अपने सृजन-काल में गणतंत्र-दिवस के उपलक्ष्य में, लाल-किले की प्राचीर से आयोजित होने वाले कवि-सम्मेलनों में उनका स्वर अनेक बार पांचजन्य के उद्घोष की तरह प्रस्फुटित हुआ है। उनकी ओजमयी वाणी से प्रभावित हो कर राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी ने उन्हें 'आधुनिक दिनकर' की संज्ञा से संबोधित किया। ब्रज-भाषा काव्य में में वे 'लांगुरिया-गीत' परमपरा परम्परा के अमर-गायक के रूप में विख्यात हैं। आकाशवाणी-दिल्ली तथा आकाशवाणी-मथुरा से 'काव्य-सुधा' तथा 'ब्रज-माधुरी' कार्यक्रमों के अंतर्गत उनके काव्य का अनेक बार प्रसारण हुआ है।
समकालीन समाचार-पत्रों, साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अनेक काव्य-संकलनों में {'अमर उजाला', 'नव-प्रभात', 'नवलोक-टाइम्स', 'सैनिक', 'नागरिक', 'अमर-जगत' (समाचार-पत्र), 'युवक', स्वदेश', 'साहित्यालोक', 'स्वराज्य' (साप्ताहिक), 'सृजन' (त्रैमासिक) इत्यादि} समय-समय पर उनके काव्य का संकलन व प्रकाशन होता रहता था। पद्मश्री आचार्य क्षेमचन्द्र 'सुमन' ने अपने महत्वपूर्ण ग्रन्थ 'दिवंगत हिंदी साहित्य-सेवी कोष' के तृतीय संस्करण हेतु श्री द्विवेदी की धर्मपत्नी श्रीमती कृष्णा द्विवेदी (से. नि. प्राचार्या कन्या इंटर कॉलेज, सासनी, हाथरस) से उनके सम्पूर्ण परिचय का ब्यौरा मँगवाया था किन्तु आचार्यवर की श्वास-रोग के चलते अस्वस्थता एवं सन १९९३ में लम्बी बीमारी के निधन के पश्चात् इस संस्करण का प्रकाशन न हो सका।
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