भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवित्त-१ / शंकरलाल द्विवेदी

943 bytes added, 13:41, 4 दिसम्बर 2020
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंकरलाल द्विवेदी |संग्रह= }} {{KKCatKavitt}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शंकरलाल द्विवेदी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavitt}}
<poem>
'''कवित्त-१'''

कान्ह कौं, कन्हाई के सखा सनेस दीजो, गोप-
गोपिका कुसल पै कुसल-छेम चाहतीं।
तुम तौ हिये तैं दूरि जानि ही न पाए, हम-
देखतीं, छकाबतीं, सुबैठि बतरावतीं।
आजुहू कदम्ब की सघन छाँह, कुञ्ज-पुंज,
गुंजति तिहारी, बाँसुरी की धुनि आवती।
तुम जौ भए दुःखी तौ, प्राननि तजैंगी स्याम,
करौ परतीति, सो तिहारी सौंह खावतीं।।
</poem>
124
edits