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{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
{{KKCatGhazal}}
पांव में ये जो आबले हुए हैं
तब कहीं जा के रास्ते हुए हैं
आप क़ातिल नहीं हैं मान लिया
ख़ून में हाथ क्यों सने हुए हैं
ज़ख्म तो आपने भी देखा है
आपके होंट क्यों सिले हुए हैं
झूट क्या सच है क्या पता है हमें
हम भी थोड़ा पढ़े लिखे हुए हैं
कब से बैठे हुए हैं एक जगह
क्या परिंदों के पर बंधे हुए है
मैच का रुख़ बदल भी सकता है
खेल में हम अभी बने हुए हैं
याद जब भी किया मुसीबत में
आप के साथ हम खड़े हुए हैं
</poem>
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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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पांव में ये जो आबले हुए हैं
तब कहीं जा के रास्ते हुए हैं
आप क़ातिल नहीं हैं मान लिया
ख़ून में हाथ क्यों सने हुए हैं
ज़ख्म तो आपने भी देखा है
आपके होंट क्यों सिले हुए हैं
झूट क्या सच है क्या पता है हमें
हम भी थोड़ा पढ़े लिखे हुए हैं
कब से बैठे हुए हैं एक जगह
क्या परिंदों के पर बंधे हुए है
मैच का रुख़ बदल भी सकता है
खेल में हम अभी बने हुए हैं
याद जब भी किया मुसीबत में
आप के साथ हम खड़े हुए हैं
</poem>