भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपूर्ण / दीप्ति मिश्र

6 bytes removed, 08:35, 7 अक्टूबर 2008
मुझ आत्मा को विलीन होना है अभी तुममें।
मेरा स्थान अभी रिक्त है तुम्हारे भीतर।
फ़िर फिर तुम सम्पूर्ण कैसे हुए?
तुममें समा कर मैं शायद पूर्ण हो जाऊँ;
किन्तु तुम?
मुझ जैसी कितनी आत्माओं की रिक्तता से
भरे हो तुम ।
जानें जाने कब पूर्ण रूप से भरेगा तुम्हारा यह--
रीतापन , खालीपन
जाने कब तक ?
जाने कब तक ?
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,801
edits