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Kavita Kosh से
मैं घबरा गई
भीतर की भाग-दौड़
गुफ़ाओं मेम मेमें बाढ़ आ गई
हँसते-किलकते बच्चे की
तेज़ी से नाचती
मनचाही राहों पर
जल्दी से जल्दी गाँठ बनाने की
आतुरता मेममें
छू जाता है पहला सिरा--
अपनी आती बेहूदा हँसी को