भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
यह सदी रोने न देगी
सच कहा तुमने।तुमने ।
हंसी होगी शाप
पथरा जाएंगी आंखेंजाएँगी आँखें
ओठ होंगे काठ
कटने लगेंगी शाखें
सच कभी होने न देगी
धूप के सपने।सपने ।
कटे होंगे पंख
तट पर बिछे होंगे शंख
पास में बहने न देगी
नदी या झरने।झरने ।
थके होंगे शब्द
ढोते अर्थ् अर्थ दुहरे
प्यास को दीखा करेंगे
जल सुनहरे
प्रिय कभी होने न देगी