भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कंकरीला मैदान
मीनों नें चंचल आँखों से
नीले सागर के रेशम के रश्मि तार से,
--हर पत्ती पर बड़े चाव से--बड़ी जतन से--
अपने अपने प्रेमीजन को देने के खातिर काढ़ा था
सदियों पहले।
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,472
edits