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|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
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कंकरीला मैदान
मीनों नें चंचल आँखों से
नीले सागर के रेशम के रश्मि तार से,
--हर पत्ती पर बड़े चाव से--बड़ी जतन से--
अपने अपने प्रेमीजन को देने के खातिर काढ़ा था
सदियों पहले।
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