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{{KKRachna
|रचनाकार=अंकिता जैन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
हमें अपने आसपास
रखने चाहिए ऐसे लोग
जो,
दुत्कार सकें,
फटकार सकें,
बचा सकें बहकावे से
भटकावे से,
जो याद दिला सकें बारंबार
हमें ही हमारी योजनाएँ,
लक्ष्य
और द्वेषरहित रास्ते।
मगर हम रखते हैं अपने पास
लंपट,
चापलूस,
लोभी,
और चाटुकार
क्योंकि हम ग्रसित हैं
ख़ुद को श्रेष्ठ समझे जाने की बीमारी से।
और उपरोक्त प्रकार के लोग
भोजन हैं उस रोग का।
</poem>
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हमें अपने आसपास
रखने चाहिए ऐसे लोग
जो,
दुत्कार सकें,
फटकार सकें,
बचा सकें बहकावे से
भटकावे से,
जो याद दिला सकें बारंबार
हमें ही हमारी योजनाएँ,
लक्ष्य
और द्वेषरहित रास्ते।
मगर हम रखते हैं अपने पास
लंपट,
चापलूस,
लोभी,
और चाटुकार
क्योंकि हम ग्रसित हैं
ख़ुद को श्रेष्ठ समझे जाने की बीमारी से।
और उपरोक्त प्रकार के लोग
भोजन हैं उस रोग का।
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