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अँजुरी से पी लूँगा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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सीने में भर लूँगा
100
'''
कितने युग बाद मिले
'''
'''
पतझर था मन में
'''
''''
तुम बनकर फूल खिले।
'''
101
फिर से वह राग जगा
हम तो इतना जाने
दुनिया नफरत की
ये प्यार न
पहचाने*
पहचाने।
</poem>
वीरबाला
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