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हीरे, सोने से परे तुम हो मन की आस।
तुझ बिन दो पल ना चले, जर्जर तन की साँस।
57
काला दिन जब आ गया, लेकर सब हथियार
आद्या ने डटकर किया, क्रूरा का संहार
5758
थामी जब तक हाथ में, तुमने जीवन-डोर।
अँधियारे टिकते कहाँ, जब हो संग में भोर।
5859
जग- सम्बन्धों से परे, तुम हो परम् उदार।
रोम रोम खुशबू भरे, तुम हो केवल प्यार।
5960
विकट कपट जग में भरा, होती कब पहचान।
संग तुम्हारा जो मिला , छलिया थे हैरान।
6061
जनम-जनम के कर्म का, केवल यही विधान।
भले -बुरे के रूप की , हो जाती पहचान।।
6162
नीच लोग करते रहे, तिकड़म सौ-सौ बार।
तोड़ नहीं पाए कभी, निर्मल मन का प्यार।
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