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बिलकीस ! ओह राजकुमारी!
तुम जल रही, कबीलाई युद्धों के बीच
क्या लिखूंगा लिखूँगा मैं, अपनी रानी के प्रस्थान के बारे में? निश्चय ही मेरे शब्द हैं शिगूफेशिगूफ़े
यहाँ हम तलाशते हैं युद्ध के शिकारों के ढेर में से
एक टूटे हुए तारे को, दर्पण की भाँति चूर-चूर हो गयी गई एक देह को,
ओह मेरी प्रिये, यहाँ हम पूछते हैं
क्या यह तुम्हारी कब्र क़ब्र थीअथवा कब्र क़ब्र अरब राष्ट्रवाद की?
मैं नहीं पढ़ूँगा इतिहास आज के बाद,
जल गईं हैं मेरी उंगलियाँ, मेरे वस्त्र सजे हैं रक्त से
यहाँ हम प्रवेश कर रहे हैं पाषाणयुग पाषाण-युग मेंक्या कहती है कविता इस युग में, बिलकीस? क्या कहती है कविता कायरता के युग में? कुचल दिया गया है अरब संसार, दमित, काट दी गयी गई है इसकी जुबानज़ुबान
हम हैं साक्षात मूर्तिमान अपराध
बिलकीस
संभवतः तुम्हारा जीवन था फिरौती मेरे स्वयं के जीवन हेतु,
निश्चय ही मैं जानता हूँ अच्छी तरह
कि जो लोग लिप्त थे हत्या में उनका उद्देश्य था मेरे शब्दों को मारना! ईश्वर की शरण में रहो, सौंदर्यशालिनीसौन्दर्यशालिनी, असंभव असम्भव है कविता, अब तुम्हारे बाद।बाद ।
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