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Kavita Kosh से
रहना कठिन
हाल में अपने
सारी राजनीति महुए में
अर्जुन बनते
निर्मम खींची
खालें नहीं बची कहुए१ में .
आगी पानी
चीतल के पीछे
शहर हाथ धो पड़े हुए हैं
छेड़े मुहिम
हवा के उलटे
हिम्मत नहीं किसी बबुए में.
जड़ को सपन
उठा देने में
चालें चलते रहे घिनौनी
लगे उबारें
पीर जतन से
कीलें ठोंक रहे बिंगुए२ में .
नई शाख
हिस्से जानें
कितने कई भाग में बांँटा
कोई फर्क
दिखा दे जानें !
शोषित नील पड़े चबुए३ में .
टिप्पणी :
२.बिंगुए-लकड़ी की मेखें।
३.चबुए-गाल और जबड़े के मध्य का हिस्सा।
-रामकिशोर दाहिया
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