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{{KKRachna
|रचनाकार=जहीर कुरैशी
|अनुवादक=
|संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी
}}
बहुत कम थे, जो यूँ ही चल पड़े थे,
सफर पर लोग तैयारी से निकले
उन्हीं फूलों को मिल पाती है इज्जत
जो हिम्मत करके फुलवारी से निकले
जो स्पर्धाओं में पीछे रह गए थे
वो आगे ही ‘कलाकारी’ से निकले
तुम्हारे इस महल के सामने से
बहुत कम लोग खुद्दारी से निकले
जो सच्चे रंग हैं ‘सद्भावना’ के
सदा होली की पिचकारी से निकले
</poem>