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[[Category:ग़ज़ल]]
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घर के अन्दर रही, घर के बाहर रही
जिन्दगी की लड़ाई निरंतर रही
आज भी मोम-सा है ‘अहिल्या’ का मन
देह, शापित ‘अहिल्या’ की पत्थर रही !
 
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