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थानेदार
कहूँ क्या मेडम
दुनिया देखी अन्दर से

चरमर चूँ थे
रिश्ते-नाते, लेकर दिल से
जोड़ा तुमने
हमने रोका-टोंका
जब भी, माना हमको
रोड़ा तुमने
आँखों में हम
नाचे-फुदके
रहना साँप-छुछुंदर से

महुवे कूँच
खड़ी कर पाए और आम
गदराना जानें
रस की गंध
लिए हम चहके उससे
कब बतियाना जानें ?
खट्टे-मीठे
अनुभव जीकर
हरदम रहे चुकंदर से

चार-मुकइया
तेंदू-खाए बेर-करौंदा
जस का तस है
हमें पुरानी
खोली अपनी, लगती
अब भी खस-खस है
नदिया-नाले
नहीं रिझाते
नाते गहर समन्दर से


-रामकिशोर दाहिया

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