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{{KKRachna
|रचनाकार=ममता व्यास
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
वह जब भी खाना पकाती
ख़ुद को पूरी तरह डुबा देती।
अपने सभी स्वाद खाने में घोल देती
उसके पास नमक, चीनी, मिर्च, हल्दी सब बेहिसाब था
अक्सर प्याज काटने के बहाने से वह ख़ूब रो लेती
और उसके भीतर का नमक आखों से बहने लगता
जल्दी ही उसका नमक, चीनी, मिर्ची और हल्दी
का संचय ख़तम होने लगा।
"क्या बेस्वाद खाना बनाती हो।
फीकी कर दी मेरी ज़िन्दगी"
(वह गुस्से से चिल्लाया)
"हाँ नमक कम हो गया तुम्हारी सब्जी में
और ज़िन्दगी में है न?
लेकिन गुंजाईश फिर भी है तुम्हारे पास
ये लो नमकदानी और चीनी जितना चाहे डालो
स्वादानुसार...
स्वाद के विकल्प छोड़े है मैंने अब भी
लेकिन सुनो...
तुमने मेरी ज़िन्दगी में इतना नमक घोल दिया कि
ज़हर हो गयी ज़िन्दगी
अब कोई गुंजाईश भी नहीं शेष...
</poem>
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|रचनाकार=ममता व्यास
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|संग्रह=
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<poem>
वह जब भी खाना पकाती
ख़ुद को पूरी तरह डुबा देती।
अपने सभी स्वाद खाने में घोल देती
उसके पास नमक, चीनी, मिर्च, हल्दी सब बेहिसाब था
अक्सर प्याज काटने के बहाने से वह ख़ूब रो लेती
और उसके भीतर का नमक आखों से बहने लगता
जल्दी ही उसका नमक, चीनी, मिर्ची और हल्दी
का संचय ख़तम होने लगा।
"क्या बेस्वाद खाना बनाती हो।
फीकी कर दी मेरी ज़िन्दगी"
(वह गुस्से से चिल्लाया)
"हाँ नमक कम हो गया तुम्हारी सब्जी में
और ज़िन्दगी में है न?
लेकिन गुंजाईश फिर भी है तुम्हारे पास
ये लो नमकदानी और चीनी जितना चाहे डालो
स्वादानुसार...
स्वाद के विकल्प छोड़े है मैंने अब भी
लेकिन सुनो...
तुमने मेरी ज़िन्दगी में इतना नमक घोल दिया कि
ज़हर हो गयी ज़िन्दगी
अब कोई गुंजाईश भी नहीं शेष...
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