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<poem>

भरम अब है ही नहीं
जगती की छाया का।

मीतु तुम्हारे भान में हूँ,
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।

मोह जी को है नहीं
आज किसी माया का।

लग रहा कि प्रज्ञान में हूँ
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।

दस दिशाएँ गा रही
मांगलध्वनि आ रही।

ईश के वरदान में हूँ,
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।

प्रेम मिश्रित मधु पिया,
मद-समर्पण सा हुआ।

अनहद से सम्मान में हूँ,
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।

कैसा विरह यह पिया !
मिलन भी जब ना हुआ।

सच है- मैं अनुमान में हूँ!
'''मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।'''
</poem>