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इक हसीन वारदात / उदय कामत

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मुख़्तसर कहानी जिसके मुख़्तलिफ़ जिहात
कुछ हसीन यादे इक हसीन वारदात
जाम बज़्म में न था नजात-ए-ग़म की रात
ज़िक्र में ममात और थी फ़िक्र में हयात
दूर देखा इक जमाल लाखों थे सिफ़ात
उसकी थी मिरी तरफ़ निगाह-ए-इल्तिफ़ात
हुस्न था बईद-ए- वहम दिल को कर दे मात
आखों आखों ने की एक दूसरे से बात
तल्ख़ सी फ़ज़ा को ख़ुश गवार कर दिया
ख़ुश्क सी ख़िज़ाँ को नौ-बहार कर दिया
उस अदा ने आज फिर शिकार कर दिया
नाम जोड़ कर यूँ पुर-वक़ार कर दिया
इत्र-बेज़ जिस्म दिल में फिर शरार कर चले
बार बार हम जवानी से यूँ हार कर चले
हम सितम-शिआ&#39;र को वफ़ा-शिआ&#39;र कर चले
आज रब्त का बदल के नाम प्यार कर चले
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