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|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=देवेश पथ सारिया
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<poem>
तुम्हारे ही कारण
खिले हुए फूलों के बगीचे में
वसंत का इत्र
कष्टप्रद लगता है मुझे

चेहरा तुम्हारा भूल चुका हूं मैं,
याद नहीं मुझे तुम्हारे हाथ भी ;
जाने कैसे महसूस होते थे
तुम्हारे होंठ मेरे होंठों पर?

तुम्हारी वजह से
भाती हैं मुझे सफ़ेद मूर्तियां
पार्क में ऊंघती हुई सफ़ेद मूर्तियां
बेआवाज़, नेत्रहीन

तुम्हारी आवाज़ भूल चुका हूं मैं
ख़ुशनुमा आवाज़ तुम्हारी
और भूल गया हूं तुम्हारी आंखें

मैं इस तरह बंधा हूं
तुम्हारी धुँधलाती स्मृति से
जैसे फूल कोई ख़ुशबू से

ज़िंदा हूँ मैं
एक घाव का दर्द ढोता हुआ
तुम्हारी छुअन भर
पहुंचा सकती है
मुझे अपूरणीय क्षति

स्पर्श तुम्हारा ढांपता है मुझे यूं
जैसे चढ़ती हो अंगूर की बेल
किसी उदास दीवार पर

मैं बिसरा चुका हूँ प्रेम तुम्हारा
फिर भी तुम ही
नज़र आती हो मुझे
प्रत्येक खिड़की में

तुम्हारी ही वजह से
तंग करती है मुझे
गर्मी की तीखी गंध
और तुम ही हो वजह
कि मैं फिर ढूंढता हूं शगुन वे
जो कर देते हैं
कामनाओं को अवक्षेपित-
टूटते हुए तारे, गिरती हुई चीज़ें

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : देवेश पथ सारिया'''
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