भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँखें / रेखा राजवंशी

829 bytes added, 04:25, 23 जुलाई 2021
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा राजवंशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रात फिर बोलती रहीं आँखें
राज़ सब खोलती रहीं आँखें

किस तरह ऐतबार कर पाते
हर तरफ डोलती रहीं आँखें

मेरे कपड़ों से, घर से, गाड़ी से
हैसियत तोलती रहीं आँखें

चेहरे कितने नकाब पहने थे
सूरतें मोलती रही आँखें

थी वहां मय, न साक़ी, पैमाने
पर नशा घोलती रहीं आँखें
</poem>