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जैसा आप मुनासिब समझें कीजिए। सिर्फ़ चंद्रबिंदु सुधारना तो अधूरा ही ईलाज है। [[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|वार्ता]] --[[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] ०९:२९, १८ अप्रैल २००८ (UTC) == == हाँ, आपकी बात ठीक है। अगर साँचा मिटा देंगे तो, वो जिस भी पन्ने पर था उस पर उसकी जगह एक लाल लिंक आ जाएगा। दूसरी तरकीब ये है कि, मान लीजिए साँचा एक छोटा सा चांद का चित्र था, ऐडिट पे जाकर हम उस चित्र के नाम को हटा के, उसकी जगह पर कोई भी एक हिडन कमैंट डाल देंगे, इस तरह कोई लाल लिंक भी नहीं बनेगा और सारी कविताओं पर चांद का निशान भी हट जाएगा। क्योंकि साँचे का मतलब है, ऐसा पन्ना जो दूसरे पन्ने पर चेप दिया गया है। उस साँचे के वजूद का तभी पता चलेगा, जब कोई ठीक की हुई कविता के ऐडिट पर जाएगा। मिसाल के लिए इस पन्ने को लीजिए— [[फालतू]]। इसका लिंक नीला दिखाई दे रहा है, याने कि ये पन्ना अस्तित्व में है, पर खाली है, इसके ऐडिट पर जाएँगे तो आपको एक हिडन कमैंट के सिवा कुछ नहीं मिलेगा। कैसा रहा? इस पन्ने को मिटा दीजिएगा। [[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|वार्ता]] --[[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] ११:३४, १७ अप्रैल २००८ (UTC) == ==नीति की बात ये कर रहा था कि, #सिर्फ़ चंद्रबिंदु जहाँ बिंदु की जगह इस्तेमाल हुआ है उसे ही सुधारा जाए।#इस वास्ते एक साँचा बनाया जाए, जो सिर्फ़ एक छोटा सा निशान हो, जो कि हर उस पन्ने पर टाँका जाए जिसे जाँच लिया गया है। हर पन्ने से मतलब, पहले कविता पर, फिर संग्रह के अनुक्रम पर, फिर कवि के पन्ने पर।#वर्तनी मानक वाले पन्ने में चंद्रबिंदु की ग़लती के बारे में बताया जाए, और ##अनुस्वार जब अनुनासिक अक्षरों के अर्धरूप को दर्शाता है, उस नियम को वापस से जोड़ें, और ये काटे की हमें कण्ठ की बजाए कंठ लिखना चाहिए वग़ैरा।#योगदान कैसे करें वाले पन्ने में ये बात लिखी जाए: कि जो छपा हुआ है, वही जस का तस टाइप करें, पर वर्तनी मानक वाले पन्ने को पहले पढ़ें और अगर छपाई में कुछ ऐसा है जो मानक के मुताबिक नहीं है तो मानक को तरजीह दें।#जितनी कविताएँ आज की तारीख़ में कोश पर हैं उनको ही चैक किया जाए, और जब ये काम पूरा हो जाए, तब वो साँचा मिटा दिया जाए, इस उम्मीद के साथ कि आगे हम ग़लती नहीं करेंगे। आपकी और दूसरों की राय चाहिए। [[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|वार्ता]] --[[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] १३:२२, १६ अप्रैल २००८ (UTC) == ==ललित जी, आप बेरुख क्यों हो रहे हैं, आप मुझे हमेशा जवाब भेजते थे। मैंने बाक़ी मैंम्बरों को चंद्रबिंदु की ग़लती को ठीक करने के लिए राज़ी कर लिया है। मुझे लगा आपके पास वक़्त नहीं था जो बिना कुछ बोले उस पन्ने को ठीक कर दिया। प्रतिष्ठा जी ने ये काम शुरु कर दिया है, मैं थोड़ी-सी नीति बना कर काम करने की सोच रहा हूँ, जो आपके बग़ैर तो हो ही नहीं सकता। [[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] १३:११, १५ अप्रैल २००८ (UTC)== मेरी फालतू तारीफ़ मत करो ==कुछ करिये!...पर मैं कि कित्ता सी? मैंने "पहले से मौजूद सामग्री की प्रूफ़-रीडिंग में महत्वपूर्ण भूमिका" निभा डाली और मुझे मालूम ही नहीं? मैं जो कविताएँ पड़ता हूँ, उनमें हिज्जों की कोई ग़लती दिखे तो ठीक करके ऐडिट समरी में "हिज्जे ठीक किए" डाल देता हूँ, जो कि मैंने मुट्ठी भर कविताओं में किया है। कहीं समरी में "प्रूफ़रीड किया" डाला है, वो उनमें जो मैंने ही पहले टाइप की थी, और जल्दबाज़ी मे (आलस के साथ) छपाई का टंकाई से मिलान कराने की ज़हमत नहीं उठाई। तिस पर जब दुबारा पन्ने में बदलाव करता तो इस मुगालता से "प्रूफ़रीड किया है" लिखता कि मैं ज्ञानपीठ वालों से ज़्यादा अच्छा प्रूफ़रीडर हूँ। सो ये प्रूफ़रीड वाली बात तो आप मिटाइए। अफ़सोस की बात है कि अपना कोश इस मामले में फिसड्डी ही है, क्योंकि हम किताब से जस के तस टाइप कर लेते हैं। "कविता कोश में वर्तनी के मानक" बनाना इस बाबत एक अच्छा क़दम हो सकता था, पर इसकी हालत घटिया है। और इसमें भी जो सही बातें लिखी हैं (सही मतलब मैं जिन्हें सही मानता हूँ), उन पर अमल करना और करवाना एक अलग काम है। आप ख़ुद इस पर अमल नहीं करते वर्ना '''ये या ए''' वाले नियम के मुताबिक ''कुछ करिये!'' की जगह ''कुछ करिए!'' होता।(इस नियम से मैं सहमत हूँ, वजह ये कि ''यी'' या ''ये'' बोलते वक़्त ज़बान ऊपर रुक जाती है और उच्चारण कठिन मालूम होता है पर ये नियम भी अधूरा ही है, ''नयी'' को भी ''नई'' ही लिखा जाना चाहिए।) इस पन्ने के पुराने संस्करण में आपने सही/ग़लत वाले सैक्शन में लिखा हुआ था की ''कण्ठ'' ग़लत है और ''कंठ'' सही है, इसको मैंने सही किया था, इस पन्ने का ०३:२५, १६ जुलाई २००७ वाला संस्करण देखिए। पर पता नहीं आप क्यों इसके हक़ में नहीं है, हम कण्ठ लिखे तो वो भी बिल्कुल सही है, और तो और ये तरीक़ा शब्द का, ज़्यादा अच्छी तरह से, उच्चारण दर्शाता है। चंद्रबिंदु का ग़लत इस्तेमाल हिंदी वर्तनी की दुखती रग है। अनुनासिक अक्षर आंशिक तौर पर नाक से उच्चारे जाते हैं, जैसे कि 'म' होंठों और नाक से बोला जाता है, ''न'' तालु और नाक से। जबकि चंद्रबिंदु की आवाज़ सिर्फ़ नाक से निकालती है। इसलिए बूंद को अगर बूँद लिखा जाता है तो वो बिल्कुल ही ग़लत है भले ही 50000 जगहों पर इसे बूँद लिखा गया हो। प्रूफ़रीडर ये ग़लती करते हैं, ([[सदस्य:Hemendrakumarrai|यहाँ पर]] वाला लिंक दबाइए)। हमारे तीन बड़े योगदानकर्ता हैं आप, अनिल जी, और प्रतिष्ठा जी। अनिल जी ये ग़लती नहीं करते। आपका आपको मालूम है, और प्रतिष्ठा जी ये ग़लती करती हैं। आप दोनों मिलकर एक-आध महीने में सारी कविताओं में चंद्रबिंदु के इस तरह के ग़लत इस्तेमाल को ठीक कर सकते हैं, एक कविता को ठीक करने में पाँच मिनट से ज़्यादा वक़्त नहीं लगता। उसके बाद नंबर आता है, नुक्ते के लोप का, याने ख़बर को खबर लिखा जाना। इसकी मुझे चिंता नहीं हैं क्योंकि साहित्य की किताबों में ऐसा नहीं होता। अख़बारों में ऐसा होता है। और अब तो हिंदी न्यूज़ चैनलों, ऐडों में भी नुक्ते को जिला लिया गया है। हम ज के नुक्ते पर कभी ग़लती नहीं करते क्योंकि इसका उच्चारण अलग होता है, हम नुक्ते के लगने से होने वाले फ़र्क़ को समझें तो इसका हल निकल सकता है। इसके अलावा क,ग और ख,फ पर नुक्ता लगता है। (मैं जिन शब्दों को जानता हूँ कि उनमें नुक्ता लगता है तो लगा देता हूँ, मैंने हाल ही में इधर-उधर से उर्दू सीखी है, ज़्यादा नहीं जानता।) उर्दू में क के लिए दो अक्षर होते ک और ق, पहले वाले को '''काफ़ या मरकज़ वाला काफ़''' और दूसरे वाले को '''क़ाफ़ या दो नुक्तों वाला क़ाफ़''' कहते हैं। दूसरे वाले की आवाज़ में फ़र्क़ होता है,क को गले से उच्चारा जाता है, अब ज़रा क को गले के और नीचे से बोलिए, ये दूसरा वाला क़ाफ़ या क़ हो गया। उर्दू में ग=گ(गाफ़) ,ग़=غ(ग़ैन)। ग़ैन को उच्चारना मैं नहीं जानता, पर इतना जानता हूँ कि इसकी आवाज़ अलग होती है। ख और फ पर जो नुक्ता लगाया जाता, (मेरे अंदाज़े से मुझे ठीक से नहीं पता) हिंदी के जैसा बोलो वैसा लिखो के नियम पर नहीं चलता, और शायद उर्दू के हिज्जों की सही पहचान के लिए लगाया जाता है। इस नुक्ते वाली जानकारी को वर्तनी मानक वाले पन्ने पर डाल दीजिए, और उर्दू के जानकारों को पूरा करने को कहिए। एक ग़ैर-ज़रूरी बात और, मेरा नाम ग़लत लिखा है, यूँ लिखें: सुमितकुमार कटारिया। [[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|वार्ता]] --[[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] १३:१०, १३ अप्रैल २००८ (UTC) == कैसे काम नहीं करता? ==आपने शायद ध्यान नहीं दिया मैंने '''दाहिनी alt''' लिखा है। मुझे लगता है यहीं पर गड़बड़ हो रही है। आप ज़रे से प्रश्नचिन्ह के लिए भाषा थोड़े न बदलेंगे। आप पंक्चुएशन और दूसरे निशानों के लिए हिंदी के मोड में दाहिनी ऐल्ट दबाए रखते हुए उनकी कीज़ दबाएँ (जैसे = के लिए ALT+=)। अब भी न आए तो फिर [http://www.unicode.org/ यूनिकोड वालों की साइट] पर जाकर शिकायत करेंगे। [[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|वार्ता]] --[[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] ११:२७, २० मार्च २००८ (UTC)== upload की दिक्कत ==काम हो गया। --[[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] १४:२४, १० मार्च २००८ (UTC) मैं मुक्तिबोध के हाथ की लिखी हुई एक कविता की इमेज अपलोड करना चाह रहा था, पर उसका फ़ॉर्मैट .tif है जिसे अपलोड नहीं किया जा सकता। मैंने उसे kavitakosh@gmail.com पर एक खाली ई-मेल की अटैचमैंट के तौर पर भेजा है। आप उसे डाल पाएँ तो मुक्तिबोध के परिचय के साँचे में विविध में डाल दीजिए। और आज मेन विकी से एक मैसेज आया था, शायद सारे मैम्बरान को, जिसमें कुछ सुधारों का ज़िक्र था, मुझे कुछ समझ में नहीं आया। अज्ञेय की सूची में से'''संध्या संकल्प / अज्ञेय''' को मिटा दीजिए, ये कविता '''संध्या-संकल्प / अज्ञेय ''' नाम से ''कितनी नावों में कितनी बार'' संग्रह में पड़ी है। --[[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] ११:२७, ७ मार्च २००८ (UTC) == == "गाँव से घर निकलना है / यश मालवीय" में कविता की पहली लाइन डिज़ाइन की लाइन के साथ निल रही थी -सो मैनें उसे ठीक कर दिया।-ललित ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
शुक्रिया ललित
जी.के. अवधिया