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|संग्रह=पोखर भर दुख / मृदुला सिंह
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<poem>
कक्षा नौ ए
मामूली-सा सरकारी कमरा नं पांच
बारिश थमी है अभी
और खिड़की पर थिरकती
सुनहरी धूप में गुम
एक साधारण-सी लड़की
हिदी के नए शिक्षक की हाजिरी में
अपने नाम की पुकार से चौंक जाती है

बहुत खूब!
किसने रखा है तुम्हारा नाम
जानती हो अपने नाम का अर्थ?
तुम्हारे नाम में छुपा है भाव
बीहड़ में कोमल के सर्जन का
आगे का समय कठोरतम होगा
शब्द की तरह जीवन से
खत्म हो जाएगी कोमलता

लड़की! करना अपने नाम को सार्थक
फैलाना सब तरफ प्रेम की उजास
जहाँ नरमी है वहाँ नमी है
है वहीं शेष कुछ मानवता
पूरी कक्षा हंस रही थी मन ही मन
और वह लड़की पैर के नाखूनों पर
नजरें टिकाए सोच रही
कि आगे कैसे बचाएगी वह
प्रेम भरी ओस-सी आंखें
और लोक की नरम जमीन
नाम के अर्थ तक पहुँचना
कहाँ है इतना आसान

अब भी जब कोई पुकारता है उसका नाम
उसे याद आ जाती है
वर्षों पहले गुरु की दी नसीहत
डर जाता है उसका मन
कि पत्थर होते जीवन में
जमा होती मुश्किलों की काई को धोना
कितना मुश्किल है
</poem>
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