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पढल लिखल बौआ / दिनेश यादव

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हौ, पढल–लिखल बौआ,
तोँ मुर्ख कियैक बइन रहल छह।
ठीकेदारक बोलीकेँ माध्यम,
तोँ कियैक बइन रहल छह॥

खोलह अपन बुद्धिकेँ मुन्ना,
आनक 'बडि लङ्वेज' कियैक बइन रहल छह।
रहबे करए पुर्खा तोहर गुलाम,
तोँ सेहो ओहे कियैक बइन रहल छह॥

सिल्पी समुदाय ठामैहि ठाम,
तोँ आबो हिरालालक प्रतिक कियैक बइन रहल छह।
नय एलैय तोरा लेल प्रजातन्त्र आ लोकतन्त्र,
तइयो तोँ ओहे पात्र कियैक बइन रहल छह॥

सत्ताजातिद्वारा बनाओल माटिक मूर्ति,
तो एकैसम् शताब्दीमे सेहो कियैक बइन रहल छह।
'हटकेक' सदखनि बनल मधेस
तोँ बेदानन्द / भोला / डम्बरक प्रतिक कियैक बइन रहल छह॥

आनक कब्जामे तोहर सोह्रे आना जल, जंगल, जमिन,
तईयो तोँ दोसरकेँ गोटी मात्र कियैक बइन रहल छह।
पोता सेहो दादा बनल इतिहास छइ,
तोँ फत्तेसिंह / परशुनारायणक प्रतिक कियैक बइन रहल छह॥

दोसरकेँ कब्जामे छ तोहर म्याकें बोली,
तईयो तोँ ओकरे स्तुतिकर्ता कियैक बइन रहल छह।
हौ पढल–लिखल बौआ,
तोँ मुर्ख कियैक बनि रहल छल॥
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