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{{KKRachna
|रचनाकार=कन्हैया लाल पण्डित
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBhojpuriRachna}}
<poem>
अलचार हो रहल मन वरदान तनिका दे द।
थाकल शरीर जननी, अब जान तनिका दे द॥
पहिले के शक्ति कहवाँ अब आज रह गइल बा।
फेनू लगा के हाथ तूँ तूफान तनिका दे द॥
पग अझुरा रहल बाटे आ नगिचा किनार के।
खोलऽ पलक भवानी आ ध्यान तनिका दे द॥
सकदम में पड़ रहल बा माँ जी कबो-कबो।
अपना कृपा किरन के भान तनिका दे द॥
कन्हइया छुवे चरन मइया राखि ल शरन।
सहला के माथ हाथे अभय दान तनिका दे द॥
अलचार हो रहल मन वरदान तनिका दे द।
</poem>
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|संग्रह=
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अलचार हो रहल मन वरदान तनिका दे द।
थाकल शरीर जननी, अब जान तनिका दे द॥
पहिले के शक्ति कहवाँ अब आज रह गइल बा।
फेनू लगा के हाथ तूँ तूफान तनिका दे द॥
पग अझुरा रहल बाटे आ नगिचा किनार के।
खोलऽ पलक भवानी आ ध्यान तनिका दे द॥
सकदम में पड़ रहल बा माँ जी कबो-कबो।
अपना कृपा किरन के भान तनिका दे द॥
कन्हइया छुवे चरन मइया राखि ल शरन।
सहला के माथ हाथे अभय दान तनिका दे द॥
अलचार हो रहल मन वरदान तनिका दे द।
</poem>