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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमिला वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
पांडव!
मेरी नजरों में तुम एक 'कापुरुष' थे।
क्योंकि,
तुमने
अपनी पत्नी की रक्षा नहीं की।
यह कैसा वचन था?
और
पत्नी को दिया हुआ वचन?
वह क्या था।
थे तो तुम
आह्वान के द्वारा पैदा किए हुए पुत्र।
तुम्हारे पिता के जन्म का इतिहास तो एक ऋषि की कृपा दृष्टि पर था।
कौनसे
आदर्श की तुम बात करते हो।
द्रोपदी की भरी सभा में ना तुमने रक्षा की
और
ना ही स्वर्ग जाते समय उसे अपने साथ ले गए।
</poem>
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पांडव!
मेरी नजरों में तुम एक 'कापुरुष' थे।
क्योंकि,
तुमने
अपनी पत्नी की रक्षा नहीं की।
यह कैसा वचन था?
और
पत्नी को दिया हुआ वचन?
वह क्या था।
थे तो तुम
आह्वान के द्वारा पैदा किए हुए पुत्र।
तुम्हारे पिता के जन्म का इतिहास तो एक ऋषि की कृपा दृष्टि पर था।
कौनसे
आदर्श की तुम बात करते हो।
द्रोपदी की भरी सभा में ना तुमने रक्षा की
और
ना ही स्वर्ग जाते समय उसे अपने साथ ले गए।
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