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{{KKRachna
|रचनाकार=अमृता सिन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
अनमने मन का
है आज
ख़ुद से सामना
अपनेआप से ही
तनातनी है
ख़ुद की ख़ुद से
ठनी है।
ज़िन्दगी का सबसे बड़ा
दुख
बीता हुआ सुख
है।
निष्कर्षहीन शामें
हवा में नमी
शून्य में तैरते
कई प्रश्नचिन्ह।
</poem>
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अनमने मन का
है आज
ख़ुद से सामना
अपनेआप से ही
तनातनी है
ख़ुद की ख़ुद से
ठनी है।
ज़िन्दगी का सबसे बड़ा
दुख
बीता हुआ सुख
है।
निष्कर्षहीन शामें
हवा में नमी
शून्य में तैरते
कई प्रश्नचिन्ह।
</poem>