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जो भी मिलेगी भूमिका
किन्तु यह तो दूसरा ही खेल है
माफ़ कर दो
इसलिए इस बार मुझको
पूर्व निर्धारित हुए हैं दृश्य सारे
अन्त भी
 
मैं अकेला
डूबती पाखण्ड में हैं
वस्तु सब
ज़िन्दगी का पार करना
है नहीं ऐसा
कि जैसे खेत का
 
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : रमेश कौशिक'''
</poem>
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