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Kavita Kosh से
<poem>
बहरहाल, अब रंगों की तादाद कम हो गई है, वह बोला,
बची-खुची खेतों की हरियाली यह, यही काफ़ी है मेरे लिए ।लिए।
और फिर समय के साथ चीज़ें घटती ही हैं ।
चीज़ें सिकुड़ जाती हैं शायद, और फिर विलय ।