भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
ऊपर से उतरी — और जब
हमने आसमान की ओर देखा तो उसकी झारी से पानी की कुछ बून्दें
आहिस्ता से गिर पड़ींहमारे पड़ीं हमारे गालों, ठुड्डियों और होंठों पर ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल'''
</poem>