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नदी-नाव / माधव मधुकर

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<poem>
चाहता था
मैं
नदी-सा सहज गति से
बस्तियों, खेतों, सघन वन-प्रान्तरों में
अनवरत बहना —
प्रकृति के प्रत्येक प्यासे कण्ठ को
परितृप्त करना

किन्तु अनगिन किन्तुओं से घिरा
घर, परिवार, खर, कतवार,
सबका बोझ लादे
मैं महज —
एक नाव बनकर रह गया ।
</poem>
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