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ग़ालिब को सुनते हुए / शरद बिलौरे
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|संग्रह=तय तो यही हुआ था / शरद बिलौरे
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<Poem>
'''चचा ग़ालिब के नाम'''
आपने मेरे सलाम का
जवाब नहीं दिया
अनिल जनविजय
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