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<poem>
आकाश की ऊँचाई अमाप्य है
और शरद का ठण्डा-नीला रंग है सर पर ।
दक्षिण को उड़ रहे हैं पक्षियों के झुण्ड,
ओह आज़ादी ।

रवानगी की वह जंगली छटपटाहट
सिर्फ़ रह जाती है कानों को रेतती हुई
जबकि पँखों की फड़फड़ाहट बादलों में गुम हो जाती है
ओह आज़ादी ।

वापस मुड़ो, तुम्हारी है क़ैद के घेर की तंगी
देखो सपना कोई और
और शीत आने पर दफ़न हो जाओ हिम के नीचे ।
ओह आज़ादी ।

'''मूल फ़िनिश भाषा से अनुवाद : सईद शेख'''
</poem>
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