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स्वप्नकाल / असद ज़ैदी

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पूरी मेरी ज़िंदगी आधी नींद में गुज़र गई
जो कुछ दिखाई दिया धुंधला ही दिखाई दिया
जिससे मिला आधा या चौथाई ही मिला
अक्सर लोगों ने सोचा पता नहीं किस गुमान में हूँ

फिर कुछ ऐसा भी था कि कुछ चीज़ें मुझे दिखाई दीं
तो जानकार मित्रों ने कहा—अरे कब? कहाँ? अच्छा ऐसा!
जब मैं कहता ख़तरा है मैं इसे पहचानता हूँ
तो वे आजिज़ होकर कहते तुम हमेशा
ओवररिएक्ट करते हो

मुझे भी लगता यह सब दुस्वप्न है बेवजह नींद में घबराता हूँ
बुरे सपने सच होते जाएँ तो जाग जाना चाहिए
उठ पड़ना लड़ जाना चाहिए
ऐसा क्यों है कि मैं वर्तमान में हमेशा ग़लत
और भविष्य में लगभग सही पाया जाता हूँ

मेरी सोहबत के असर से मेरी बीवी भी बच न सकी
बोली यह हमारी ख़ुशक़िस्मती है
कि हम सही समय पर बूढ़े हो गए हैं
अनक़रीब ही मर जाएँगे
भविष्य की आने वाले जानें

मैंने कहा अरी भली औरत
जो हमने जी लिया भविष्य नहीं तो क्या था

(नवम्बर 2021)
</poem>
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