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|रचनाकार=सुब्रह्मण्यम भारती
|अनुवादक= अनिल जनविजय
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<poem>
चान्द और सूरज सी उज्ज्वल हैं
तेरी आँखें कन्नम्मा !
आसमान में उड़ने के लिए हैं
तेरी पाँखें कन्नम्मा !

इन गोल काली आँखों में समाई
आकाश की सारी कालिमा !
मुखड़े पर तेरे फैली सुखदाई
सुबह के सूरज की लालिमा !

रत्न जड़ी है वो गहरी नीली
रेशम की तेरी कान्तियुक्त साड़ी !
आधी रात में सितारों भरी जैसे
चमक रही है आकाशगंगा हमारी !

'''मूल तमिल से अनुवाद (कृष्णा की सहायता से) : अनिल जनविजय'''
</poem>
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