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<poem>
आतिश ए गुल है सरापा वो वफ़ा है साईं,
इश्क़ की अज़मत ओ वुसअत है अदा है साईं।

उसके होंटों के तबस्सुम का शरारा ही नहीं,
है अगर शम्स तो आकाश पे क्या है साईं।

उसकी आंखों से छलकता है दो आलम का सुरूर,
उसकी हर सांस में इक बाद ए सबा है साईं।

उसके जलवों में हैं पोशीदा हया के मोती,
उसके अंदाज़ में आशिक़ की अना है साईं।

उम्र भर सोचता रह जाऊं मगर मुश्किल है,
मुझसे पूछो न वो मेरे लिए क्या है साईं,

एक चौपाई है दीवार पे मानस की लिखी,
वो मुहब्बत की अज़ानों की सदा है साईं।

चांद तारों का वजूद उसकी जबीं ही से है,
वरना ये नूर का सैलाब भी क्या है साईं।

उसके ही पांव की मिट्टी को इकठ्ठा कर के,
जिस्म इंसान का तामीर हुआ है साईं।

उसके दामन में है इक जन्नत ए फिरदौस निहां,
उसका चेहरा किसी मंदिर की ज़िया है साईं।

जिसने मुश्किल में मेरे दिल को संभाले रक्खा,
हो न हो वो तो मेरी मां की दुआ है साईं।

वो मुजस्सम कोई कुदरत का करिश्मा है,नदीम,
दूर रहकर भी कहीं मुझमें छुपा है साईं।
</poem>
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