भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
घास आधी बर्फ़ से ढकी हुई है ।
 यह उस उसी तरह की बर्फ़बारी थी
जो दोपहर बाद शुरू होती है
 
और अब घास के बने
छोटे छोटे घरों में अन्धेरा छा रहा है ।
'''2
अगर मैं अपने हाथ नीचे पृथ्वी के पास ले जाता 
मैं वहाँ से उठा सकता था
मुट्ठी भर अन्धेरा
 
वहाँ हमेशा अन्धेरा रहता है
जिसपर हमने कभी ध्यान नहीं दिया ।
'''3
जैसे-जैसे बर्फ़ भारी होती जाती है,
मकई के डंठल मुरझाते चले जाते हैं
 और खलिहान घर के क़रीब खिसकता जाता है।है । बढ़ते तूफ़ान में खलिहान हमेशा अकेले ही खिसकता सरकता है ।
'''4
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,616
edits